Tuesday, April 19, 2016

श्री महावीर स्वामी जन्मकल्याणक : Shree Mahaveer Swami Janmakalyanak

!! श्री महावीर स्वामी जन्मकल्याणक विशेष !!

हमारे सरीखी भगवान महावीर की अनंत यात्रा -

वैसे तो किसी भी जीव का जैन धर्म के अनुसार ना तो आदि या जन्म होता है, और ना ही अंत या मरण होता है। फिर भी हमारे पुराणों के अनुसार भगवान महावीर के जीवन की यात्रा का प्रारंभ पुरूरवा भील के नाम से जाना जाता है। इस भव में उन्होंने मुनिराज के उपदेश से कौए के मांस का त्याग कर अपूर्व पुण्य का संचय किया और फिर शांत परिणामों से देह त्याग कर स्वर्ग में देव बनें। 

वहाँ से आयु पूर्ण कर भरत चक्रवर्ती के यहाँ रानी अनंतमती से मारीच नामक पुत्र बने। मारीच के भव में आपने पूज्य आदिनाथ तीर्थकर की वाणी का श्रद्धान ना कर 700 राजाओं के साथ विपरीत स्वरूप को धारण किया और फिर तापस का वेश धारण कर सांख्यमत सरीखे कई विपरीत मत या परम्पराएँ और पेड़, पत्थर और अग्नि को पूजने वाले धर्म चलाये।

इस तरह हम देखते हैं कि किसी ना किसी रूप में आज की बहुत सी मान्यता, मत या धर्म मारीच के जीव द्वारा ही पोषित और चलाये हुए हैं। मारीच के भव में मन्द कषाय धारण करने से उन्हें देव भव मिला। इस तरह कई बार देव भव और मनुष्य भव मिला और फिर देव बने, एकेन्द्रिय हुए, इस सिद्धांत से वे इतरनिगोद मे भी गये। वहाँ पर वे अनंत काल तक रहे और फिर शास्त्रों के अनुसार निगोद से निकल कर महावीर स्वामी के जीव ने अनेक भव धारण किये, जो इस प्रकार के हैं - 

1) 1000 बार आंक का वृक्ष बना 
2) 80000 बार सीप बना
3) 20000 बार नीम का वृक्ष बना
4) 90000 बार केले का पेड़ बना
5) 3000 बार चंदन का वृक्ष बना, 
6) 5 करोड़ बार कनेर वृक्ष बना,
7) 60000 बार वेश्या, गणिका या नगरवधू बना
8) 5 करोड़ बार शिकारी बना,
9) 20 करोड़ बार हाथी बना
10) 60 करोड़ बार गधा बना,
11) 30 करोड़ बार कुत्ते की पर्याय में रहा 
12) 60 करोड़ बार नपुसंक बना,
13) 20 करोड़ बार स़्त्री बना,
14) 90 लाख बार धोबी बना,
15) 8 करोड़ बार घोड़ा बना
16) 20 करोड़ बार बिल्ली बना,
17) 60 लाख बार गर्भपात से मरण को प्राप्त हुआ
18) 80 लाख बार नीच जाति की देव पर्याय प्राप्त की। 
ये सभी भव उन्होंने पिछले चौथे काल में धारण किये थे। लेकिन आप जानते ही हैं कि अनादिकाल से आज तक के समय में अनंत बार चौथे काल हो चुके हैं। इस तरह चौरासी लाख योनियों में से प्रत्येक योनी में उन्होंने और हम सभी ने अनंत बार इसी तरह के जन्म धारण किये हैं।

अतः यह सिर्फ भगवान महावीर के जन्मों का ही विवरण नहीं है। वास्तव में तो देखा जाए, तो हम सभी लोगों ने अनादिकाल से आज तक अनंत बार सभी जन्म धारण किये हैं। तथा इस अन्तरिक्ष या ब्रह्माण्ड का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहाँ हमने अनंत बार जन्म-मरण ना किया हो। इस तरह से कई तरह के जन्मों में भ्रमण करते हुए भगवान महावीर एक बार विश्वनंदी नामक राजकुमार बनें। फिर उन्होंने शुद्ध सम्यकत्व धारण कर मुनिराज की चारित्र दशा धारण की और प्रथम नारायण बनने की कर्म प्रकृति भी बांधी। 

एक बार इन मुनिराज ने एक माह का निर्जला मासोपवास किया, जिससे वे अत्यंत कमजोर हो गये। फिर वे पारणा या आहार हेतु मथुरा नगरी में गये। वहाँ एक बैल के धक्का देने से वे गिर पड़े। 
तब किसी परिचित ने उनका खूब उपहास किया। 
इस पर उन्होंने अत्यंत क्रोधित होकर उस व्यक्ति को मार डालने का निदान बंध कर लिया। इस अत्यंत विकारी भाव से उनके सम्यक्त्व का छेदन हो गया और फिर मंद कषाय से मरकर वे स्वर्ग गये।

वहाँ से आकर प्रथम नारायण के रूप में त्रिप्रष्ठ चक्रवर्ती बने और अपना उपहास उड़ाने वाले को मार कर वहां की आयु पूर्ण कर सातवे नरक के नारकी बने। भगवान महावीर स्वामी के दसवें पूर्व भव में वे सिंहगिरी पर्वत पर भयानक सिंह बने। 
इसी पर्याय में उन्हें हिरण को मारते और खाते हुए देख कर चारण ऋद्धि धारी आकाशगामी अमितप्रभ और अमितकीर्ति मुनिराजों के अत्यंत करुणापूर्वक किये गये संबोधन से उनको पुनः सम्यकदर्शन प्राप्त हुआ। 

देखिये, कर्मों की विचित्रता कैसी होती है कि भगवान आदिनाथ स्वामी के पोते होने और भरत चक्रवर्ती के पुत्र होने पर भी, उन महापुरुषों के समझाने पर भी भगवान महावीर के जीव का कल्याण नहीं हुआ, लेकिन जब होने का समय आया, तो शेर के भव में आकाश से उतर कर मुनिराज आये और उनका कल्याण हो गया।वहाँ से आयु कर फिर आठवें भव में जम्वूद्वीप के छतरपुर नगर में राजा नंदीवर्धन-वीरमती के नंद नामक पुत्र हुए। 

इसी भव में प्रोष्ठिल नामक श्रुतकेवली के सानिध्य में मुनि दीक्षा धारण कर सोलह कारण भावनायें भाकर तीर्थकर प्रकृति का बंध किया। पुनः वहाँ आयु पूरी कर प्राणत स्वर्ग के पुष्पोत्तर विमान में इन्द्र हुए। 

अंत में वहाँ से च्यकर राजा सिद्धार्थ-त्रिशलादेवी के यहाँ वर्धमान नामक हमारे चैबीसवें अंतिम तीर्थकर का पद प्राप्त का निर्वाण की प्राप्ति की।

"हे चैतन्य प्रभो, जिस तरह भगवान महावीर ने अपने अनंत भवों की यात्रा को समाप्त कर मोक्ष पद को प्राप्त किया, इसी तरह हम सब भी प्रतिज्ञा करें कि हम भी उनके बताये मार्ग पर चलें,
फिर सबको कल्याण का मार्ग दिखायें। साथ ही स्वयं की भी अनंत भवों की यात्रा को समाप्त कर परम पद को पाकर अनंत काल तक अब उनके साथ रहें।

नाकोड़ा जी द जैन तीर्थ पेज परिवार की तरफ से आप सभी को महावीर जन्म कल्याणक की आध्यात्मिक मंगलकामनाएं। 

।।जय नाकोड़ा पार्श्वनाथ।।
।।जय महावीर।।
।।जय नाकोड़ा भैरव।।